Saturday 22 June 2013

तवायफ

पाँव में बेड़ियाँ जब छनकती  हैं
तो बेकल हो नाच 
उठते हैं मेरे सभी गम
मजबूरियों की ताल पर
हालातों के राग पर
मैं नाचती जाती हूँ
मैं नाचती जाती हूँ
मैं बाहर से कुछ और
अन्दर से कुछ और
दिखाई जाती हूँ
तमाशबीन इस दुनिया में
मैं ऐसे ही पेश की जाती हूँ
जहाँ मेरे दर्द-ओ -जिस्म
के हर रात  सौदे होते हैं
एक दुल्हन की तरहां मैं
हर रात सजाई जाती हूँ
मैं एक माँ,एक बहिन,
एक बेटी,एक बीवी और 
एक औरत बाद में
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ 
 मैं औरत बाद में
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ !!!!!!

~~अक्षय-मन 
© copyright 

5 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

मंगलवार 25/06/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
आपके सुझावों का स्वागत है ....
धन्यवाद !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सच को बखूबी लिखा है ।

Reetika said...

Acchi rachna hai...

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

मर्मिक……। तवायफ होना कितना दंश देता होगा एक नारी को क्युकी तबायफ बनती नही हैं बनायीं जाती हैं नारी !

Ramchadar said...

Bahut sundar