पाँव में बेड़ियाँ जब छनकती हैं
तो बेकल हो नाच
उठते हैं मेरे सभी गम
मजबूरियों की ताल पर
हालातों के राग पर
मैं नाचती जाती हूँ
मैं नाचती जाती हूँ
मैं बाहर से कुछ और
अन्दर से कुछ और
दिखाई जाती हूँ
तमाशबीन इस दुनिया में
मैं ऐसे ही पेश की जाती हूँ
जहाँ मेरे दर्द-ओ -जिस्म
के हर रात सौदे होते हैं
एक दुल्हन की तरहां मैं
हर रात सजाई जाती हूँ
मैं एक माँ,एक बहिन,
एक बेटी,एक बीवी और
एक औरत बाद में
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ
तो बेकल हो नाच
उठते हैं मेरे सभी गम
मजबूरियों की ताल पर
हालातों के राग पर
मैं नाचती जाती हूँ
मैं नाचती जाती हूँ
मैं बाहर से कुछ और
अन्दर से कुछ और
दिखाई जाती हूँ
तमाशबीन इस दुनिया में
मैं ऐसे ही पेश की जाती हूँ
जहाँ मेरे दर्द-ओ -जिस्म
के हर रात सौदे होते हैं
एक दुल्हन की तरहां मैं
हर रात सजाई जाती हूँ
मैं एक माँ,एक बहिन,
एक बेटी,एक बीवी और
एक औरत बाद में
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ
मैं औरत बाद में
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ !!!!!!
~~अक्षय-मन
तवायफ पहले
कहलाई जाती हूँ !!!!!!
~~अक्षय-मन
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5 comments:
मंगलवार 25/06/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
आपके सुझावों का स्वागत है ....
धन्यवाद !!
सच को बखूबी लिखा है ।
Acchi rachna hai...
मर्मिक……। तवायफ होना कितना दंश देता होगा एक नारी को क्युकी तबायफ बनती नही हैं बनायीं जाती हैं नारी !
Bahut sundar
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